जो क्रोध के मारे आपे से बाहर है वह मृत्यु तुल्य है, किन्तु जिसने क्रोध को त्याग दिया है, वह संत के सामान है ! मधुर वाणी हो तो सब वश में हो जाते है, वाणी कटु हो तो सब शत्रु बन जाते है ! सुखी होना चाहते हो तो सुख को बांटना सीखो, विद्या की तरह सुख भी बांटने से बढ़ता है !

अनंत चतुर्दशी का व्रत सुखी जीवन के लिए !

आज अनंत चतुर्दशी है | भाद्र मास के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है | आज के दिन शेषशायी भगवान विष्णु की पूजा अराधना करने का प्रावधान है | इस रूप में भगवान विष्णु जितना मोहक है उतना ही आम जीवन में प्रभाव रखता है | अपने चित्रों में देख रहे है विष्णु क्षीर सागर के बीचोबीच शेष नाग के ऊपर उसके फन की छाया में विश्राम करते दिखाई देता है और साथ में पैरों पर लक्ष्मी जी का हाथ है |

भगवान विष्णु के इस स्वरुप में एक सन्देश छिपा हुआ है , जो हमारे पारिवारिक और सामजिक जीवन को दिशा देता है |

मान्यता है की श्रृष्टि का सर्जक ब्रह्मा है तो विष्णु के पास श्रृष्टि के संचालन व पालन पोषण का दायित्व है और भगवान शिव संहारक शक्ति है | अब चुकी विष्णु श्रृष्टि का संचालन व पालन पोषण का दायित्व निभाते है , इसलिए गृहस्थों के भगवान कहना कदापि अनुचित न होगा |


भगवान विष्णु का यह मुद्रा और गृहस्थ की जिन्दगी में बहुत कुछ समानता है | जिस तरह विष्णु जी क्षीर सागर में रहता है,वैसे ही हम भाव सागर में रहते है | लक्ष्मी के पैर दबाने से उन्हें जो सुख की अनुभूति मिलता है , वहीँ शेषनाग के फन की छाया भी उनके ऊपर है | गृहस्थ जीवन भी ठीक इसी प्रकार का होता, सुख और दुःख से परिपूर्ण | शेषनाग के फन उनकी दायित्व की ओर चिन्हित करते है |

इतनी सारी जिम्मेदारी के वाबजूद विष्णु का मुख मंडल हमेशा मुस्कुराता हुआ नजर आता है | अर्थात हमारे लिए यह शिक्षा देने वाला सन्देश है की परिस्थिति चाहे अनुकूल हो या प्रतिकूल हमें धैर्य नहीं खोना चाहिए और हमें हमेशा मुसुकुराते रहना चाहिए | हमारे मन में शांति होनी चाहिए और व्यव्हार से परिवार में सुखद प्रेम की बरसात हो |


लक्ष्मी के पैरों की तरफ बैठना भी यह सन्देश देता है की जो अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन कुशलता से करता है, लक्ष्मी उसका आदर करती है तथा गृहस्थ को कर्म को पहला स्थान देना चाहिए और लक्ष्मी यानी की धन-सम्पति को आखिरी |

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