जो क्रोध के मारे आपे से बाहर है वह मृत्यु तुल्य है, किन्तु जिसने क्रोध को त्याग दिया है, वह संत के सामान है ! मधुर वाणी हो तो सब वश में हो जाते है, वाणी कटु हो तो सब शत्रु बन जाते है ! सुखी होना चाहते हो तो सुख को बांटना सीखो, विद्या की तरह सुख भी बांटने से बढ़ता है !

शास्त्रों में तुलसी महिमा !!


तुलसी के महत्म्यों के कारण शक्ति के सूक्ष्म प्रभावों से पुरानों के अध्याय भरे पड़े है |
सर्व रोग निवारक तथा जीवन शक्ति संवर्धक इस औषधि को प्रत्यक्ष देव माना जाना इसी तथ्य पर आधारित है की ऐसे सस्ती,सुलभ और उपयोगी वनस्पति मानव जाति के लिए कोई और नहीं है | हमारे पूर्वजो ने यह चतुराई की कि जो जो बाते हमारे जीवन के लिए उपयोगी और लाभकारी थीं उनको धर्म से जोड़कर धर्माचरण में शामिल कर दिया ताकि हम उसे धर्म का अंग समझकर उसका श्रधापुर्वक पालन करें |

आइये जानते है शास्त्रों में तुलसी महिमा :--

पत्रं पुष्पं फलं मूलं त्वक स्कन्ध संज्ञितम |
तुलसी संभवं सर्वं पावनं मृतिकादिकम ||

तुलसी के पते, पुष्प,फल, मूल,त्वक ( छल, स्कन्ध ( तना) आती सभी पवित्र और सेवनिय है |
यहाँ तक की इसके पौधे टेल की मिटटी भी पवित्र होती है |

तुलसी गन्धामादाय यत्र गच्छति मारुतः |
दिशो दश पुनात्याशु भूत ग्रामांश्च तुर्विधान ||

अर्थात तुलसी की सुगंध वायु के माध्यम से जहां जहां तक पहुँचती है उन सभी दिशाओं में निवाश करने वाले प्राणी और स्थान शुद्ध हो जाते है |

तुलस्या रोप्नात्सेकात्पादकानि महान्त्यापी |
सक्षयं यान्ति देवेशि ! तमः सूर्योदये यथा ||

अर्थात जिस प्रकार सूर्योदय होते ही अन्धकार का अंत हो जाता है उसी प्रकार तुलसी के पौधे लगाने से उसको सेवन करने से रोग संतापों का नाश हो जाता है |

तुलसी विपिन्स्यापी समन्तातपावनं स्थलम |
क्रोश मातरं भवत्येव गांगेय स्वेव्पावकः ||

जहाँ तुलसी का जंगल होता है वहां आसपास कोसभर तक का वायुमंडल गंगाजल के सामान शुद्ध रहता है अर्थात जसे गंगा जल सड़ता नहीं वैसे ही वहां का वायुमंडल अशुद्ध नहीं होता ||

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