जो क्रोध के मारे आपे से बाहर है वह मृत्यु तुल्य है, किन्तु जिसने क्रोध को त्याग दिया है, वह संत के सामान है ! मधुर वाणी हो तो सब वश में हो जाते है, वाणी कटु हो तो सब शत्रु बन जाते है ! सुखी होना चाहते हो तो सुख को बांटना सीखो, विद्या की तरह सुख भी बांटने से बढ़ता है !

देवों में प्रथम पूजनीय गणेश जी |



गजाननं भुत्गानादीसेवितं कपितजम्बूफल्चारुभक्ष्न्म |
उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम ||



कोई भी पूजा अनुष्ठान के पहले हम भगवान् गणेश जी का ध्यान करते है | शादी-विवाह या अन्य कोई भी आयोजनों की सफलता के लिए उन्हें सर्वप्रथम पूजा, अर्चना करने का विधान है | क्यूंकि गणपति हमारे सर्वप्रथम पूज्य है |

गणेश चतुर्थी के अवसर पर विघ्नेश्वर गणेश जी का पूजा का प्रावधान है | लेकिन गणेश जी पूजा को नहीं बल्कि अपने भक्तों की आचरण को दृष्टिगत रखते है |

अतः गणेश भक्त होने का असल मतलब है की अपने आचरण में पवित्रता रखें | वह समाज और परिवार का आदर करता हो | किसी भी प्रकार का नशा व तामसिक पदार्थ का सेवन न करता हो | अपने कर्तव्य पथ पर सच्चाई के साथ चलता हो, कभी झूठ न बोले |

मान्यता यह है की इस दिन चन्द्रमा को नहीं देखना चाहिए |एक पौराणिक कथा है की एक बार चन्द्रमा ने गणेश जी का गजमुख व लम्बोदर रूप का मजाक उड़ा दिया | चंद्रमा को अपने रूप का अभिमान और निरादर करने की प्रवृति जैसी बुराइयां देखकर गणेश जी ने उन्हें ज्ञान का पाठ पढ़ने के लिए उसे शाप दे दिया की जो भी तुम्हे देखेगा, उस पर कोई कलंक लगेगा |


चंद्रमा को अपने भूल का पश्चाताप हुआ और तुरंत गणेश जी से क्षमा याचना कर लिया , गणेश जी प्रसन्न हो गए और उन्होंने भद्रपद की शुक्ल चतुर्थी को ही इस शाप का प्रभाव रहने दिया, बाकि दिन के लिए चन्द्रमा को मुक्त कर दिया |

Comments :

1
Patali-The-Village said...
on 

धार्मिक प्रचार के लिए एक अच्छी प्रस्तुति|

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