जो क्रोध के मारे आपे से बाहर है वह मृत्यु तुल्य है, किन्तु जिसने क्रोध को त्याग दिया है, वह संत के सामान है ! मधुर वाणी हो तो सब वश में हो जाते है, वाणी कटु हो तो सब शत्रु बन जाते है ! सुखी होना चाहते हो तो सुख को बांटना सीखो, विद्या की तरह सुख भी बांटने से बढ़ता है !

नवरात्र :- आत्मशुद्धि का त्योहार !

जय माता दी ! जय माता दी !जय माता दी !जय माता दी !

कल यानि 8 अक्तूबर से नवरात्र शुरू हो रहा है | वातावरण में आज से ही कल की तयारी दखी जा रही है | बाजार में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी है | वैसे भी नवरात्र में हमारे आसपास के वातावरण भी पवित्र व भक्तिमय हो जाता है |

नवरात्र में भक्त जन व्रत की विधिविधान को लेकर बड़े ही उत्सुक एवं जिज्ञासु होते है | लेकिन आप वही विधान चुने, जिसका आप आसानी से निर्वाह कर सकते हों |

आजकल के माहौल में नवरात्र व्रत की ऐसी विधि चुनना आवश्यक है, जिससे आप दैनिक कार्य सुचारू रूप से कर सकें | व्रत आप पर बोझ न बने | व्रत के नाम पर स्वयं को पीड़ा या दुःख देना ठीक नहीं है | सही मायने में नवरात्र व्रत आपको देवी माँ के समीप लाने और उनकी कृपा, आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए है, कष्ट भोगने के लिए नहीं |

और एक बात जान ले, सिर्फ उपवास रखना ही सम्पूर्ण व्रत नहीं है | व्रत का मतलब होता है संयम | उपवास या फलाहार हमारी काया को शुद्ध करता है , उपवास में लिए गए संकल्प हमारे मन को निर्मल व पवित्र करते है | वहीँ देवी माँ के ध्यान तथा नाम मन्त्र जाप से मन पवित्र हो जाता है | तनमन की पवित्रता उपासना को सफल बनाती है |


दरअसल नवरात्र आत्म शुद्धि का महात्यौहार है | वर्तमान समय में चारो तरफ वातावरण और विचारों में प्रदुषण ही प्रदुषण है | ऐसी परिस्थिति में नवरात्र का महत्व और भी बढ़ जाता है | चुकी इस समय प्रकृति में एक प्रकार की विशिष्ट दिव्य ऊर्जा होती है, जिसको आत्मसात कर लेने पर व्यक्ति का काया कल्प हो जाता है | सच्चे मन व श्रद्धा भक्ति से की गई प्रार्थना देवी माँ तक अवश्य पहुँचती है और माँ अपने बच्चों को दुखी देखकर भला चुप कैसे रह सकती है |

माँ अपने सभी पुत्रों को एक सामान प्रेम करती है, लेकिन उसकी सबसे अधिक होती है जिसमे सद्गुण हों | इसलिए माँ भगवती को प्रसन्न करने के लिए दुर्गुणों को छोड़कर सद्गुणों को धारण करें |


वैसे भी जब भक्त स्वयं को शक्तिपुत्र मानकर भवानी की उपासना करेगा, तो वह पूजा मातृसेवा ही होगी | यह भी सच है की पुत्र तो कुपुत्र हो सकता है, किन्तु माता कुमाता नहीं होती ! अगर सच्चे मन से कोई भी व्यक्ति माँ को पुकारेगा , तो वह निश्चय ही दौड़ी चली आएँगी !

जयकारा शेरावाली दा ! बोल सच्चे दरबार की जय !