जो क्रोध के मारे आपे से बाहर है वह मृत्यु तुल्य है, किन्तु जिसने क्रोध को त्याग दिया है, वह संत के सामान है ! मधुर वाणी हो तो सब वश में हो जाते है, वाणी कटु हो तो सब शत्रु बन जाते है ! सुखी होना चाहते हो तो सुख को बांटना सीखो, विद्या की तरह सुख भी बांटने से बढ़ता है !

मिथिलांचल में तिला संक्रांतिक पावनि

मिथिलांचल अपन विशेष आ विभिन्न प्रकारक पाबनि त्यौहार के लेल प्रसिद्ध रहलाह अछि जाहि में "तिला संक्रांति" के सेहो अपना अहिठाम बहुत महत्व देल गेल अछि। ओना देश के हर राज्य में संक्रांतिक त्यौहार मनएल जायत अछि मुदा नाम कतौ किछ त कतौ किछ होयत अछि ।

धियापुता जखन छलहुँ, आजुक दिनक अविस्मरणीय अदृश्य  चित्र मस्तिष्क पर  बेर बेर कौंध रहल अछि । हाड़कपाँ देब वाला ठंढ में तिलक लोभे पोखरि महार पर भोर भोर दौड़ लगबैत छलहुँ किएक त हमर बड़की माय डुबकी के बदले तिल देबाक आश्वासन दैत छलीह फेर त डुबकी पर डुबकी दैत छलहुँ आ भेटैत छल तिल आ संगहि जुग जग जीवाक आशीर्वाद ।

ततपश्चात दही-चुरा ,तिलक लाय, चुराक लाय, मुरहिक लाय आ भरि दिन गाम में घुमि घुमि खायत रहैत छलहुँ। फेर खिचड़ी दही पापड़ घी अंचाड इत्यादि पेट भरि खायत छलहुँ। मोन अबैत अछि धियापुता वाला अल्हड़ मस्त उ दिन जखन दिन भरि बिनु पिने मस्त रहैत छलहुँ आई अछैत सब किछ जेना किछ नै बुझा रहल अछि। गामक माटी-पानि स जुड़ल रहलहुँ से  पाबनि में मोन अशांत आ भाबुक भ जायत अछि ।

जिनगीक भागम भाग में अतेक आगा चलि एलहुँ की सब किछ जेना खुजल आँखिक सपना बुझना जायत अछि। आह कतेक निक आ अद्बुद्ध , अविरल दिन छल बचपन के,काश फेर स कियो लौटा दैत ।

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